राष्ट्रकूट वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में सभी प्रतोयोगी परीक्षाओ लिए उपयोगी (Important general knowledge related to Rashtrakuta dynasty useful for all competitive examinations in Hindi) - GK Study

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राष्ट्रकूट वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में सभी प्रतोयोगी परीक्षाओ लिए उपयोगी (Important general knowledge related to Rashtrakuta dynasty useful for all competitive examinations in Hindi)

राष्ट्रकूट वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में सभी प्रतोयोगी परीक्षाओ   लिए उपयोगी (Important general knowledge related to Rashtrakuta dynasty useful for all competitive examinations in Hindi)




राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूट वंश की शक्ति की नीव डालने वाले "दन्तिदुर्ग" नामक सामंत था ।उसने अपने स्वामी चलुक्य राजा कितिवर्मन को परास्त करके दक्षिण के बड़े भाग पर अधिकार जमा लिया । भड़ौच के पास गुर्जर राज्य को भी उसने जीत लिया और प्रतिहारों से मालवा छीन लिया ।कहा जाता है की दन्तिदुर्ग ने काची के पल्ल्वो को भी परास्त किया ।

  दन्तिदुर्ग के बाद उसका चाचा "कृष्ण" गद्दी पर बैठा जिसकी ज्ञात तिथि 758 ई. है ।कृष्ण ने चालुक्यों की सत्ता को पूर्णतः नष्ट कर दिया ।उसने मैसूर के गंग तथा वेंगी के पूर्वी चालुक्य को भी पराजित किया ।लगभग ७७३ई. में इस यशस्ति राजा की मृत्यु हो गई ।कृष्ण की विजयो से राष्ट्रकूट साम्राज्य काफी विस्तृत हो गया ।कृष्ण एक विजेता के रूप में ही नही बल्कि महान भवन निर्माता कैलाश मंदिर बनवाया गया ।

कृष्ण प्रथम की मृत्यु के बाद लगभग 773 ई. में उसका पुत्र "गोविन्द"  राजा बना ।प्रारम्भ में कुछ सक्रिय रहने के बाद वह विलासी और लंपट बन गया ।उसने शासन का कार्य अपने अनुज "ध्रुव" पर छोर दिया ।ध्रुब ने विद्रोह करके लगभग 780  ई. में गद्दी पर कब्जा कर लिया ।

"ध्रुव" राष्ट्रकूट वंश का शक्तिशाली राजा हुआ ।उसने मैसूर, वेंगी,कन्नौज ,और बंगाल के राजाओ को परास्त किया ।दक्षिण में अपनी प्रभुता स्थापित करके उसने उत्तर भारत की ओर मुख मोड़ा।वह अवन्ति के वतसराज और बंगाल के धर्मपाल के बीच कन्नौज प्रभुता के लिए संघर्ष चल रहा था ।ऐसे समय ध्रुव ने आक्रमण करके वतसराज को इतनी बुरी तरह हराया की वह राजस्थान के मरुप्रदेश से भाग गया ।इसके बाद ध्रुव ने पाल नरेश को पराजित किया ।यधपि उत्तरी भारत पर ध्रव की विजयो का कोई स्थायी प्रभाव नही पड़ा,तथापि सम्पूर्ण भारत में उसकी शक्ति की धाक जम गई ।

राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा "गोविन्द तृतीय" हुआ जो ध्रुव का पुत्र था ।उसने लगभग 793 ई. से 814 ई. तक राज्य किया ।मैसूर और पल्लव राजा को परास्त करके सारे दक्षिण भारत को उसने जीत लिया ।गोविन्द के भाई ने 12  सामंत राजाओ की सहायता उसके विरुद्ध विद्रोह किया ,पर गोविन्द ने उसे पराजित करके बंदी बना लिया ।भी के पश्चात्ताप करने पर गोविन्द न केवल उसे छोड़ ही दिया वरन गंगा राज्य में राज्य -प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया ,पर उसने पुनः विद्रोह किया और उसे फिर हराकर बंदी बनाना पड़ा ।दक्षिण भारत को विजय करने के बाद गोविन्द तृतीय उत्तर की तरफ बढ़ा ।गोविन्द तृतीय का राज्य कन्नौज ,बनारस और भड़ौच से लेकर निचे के सारे दक्षिण में फैल गया ।

दक्षिण भारत में गोविन्द की अनुपस्ति का लाभ उठाकर चोल ,केरल ,पाण्ड्य ,काची और गंगवारी के राजाओ ने उनके विरुद्ध संघ बनाया ।लेकिन गोविन्द ने उनकी सयुक्त शक्ति को धूल चटा दिया ।गोविन्द की इन विजयो से दरकार लंका के राजा ने उपहार भेजकर उसे प्रसन्न करने का प्रयास किया ।इस महान सम्राट की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे राष्ट्रकूट वंश की शक्ति घटने लगी ।

गोविन्द तृतीय के बाद 814 ई.में उसका पुत्र "अमोघवर्ष" राजा बना जिसने 878 ई. तक शासन किया ।उसके समय में चालुक्यों ने विद्रोह किया ,किन्तु उन्हें परास्त होना पड़ा ।अमोघवर्ष के समय में मैसूर राष्ट्रकूटों के हाथ से निकल गया ।उसका गंगो से भी वर्षो तक संघर्ष चलता रहा ,पर अंत में उसने गंगा नरेश से अपनी पुत्री का विवाह करके संघर्ष समाप्त किया ।अमोघवर्ष ने मान्यखेत नामक नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।इस मान्यखेत को ही आजकल मालखेर कहते है जो शोलापुर से लगभग ९० मिल दक्षिण-पूर्व में है ।लगभग ६४ वर्ष तक राज्य करने बाद अमोघवर्ष की मृत्यु हो गई ।यधपि वह एक बहुत बड़ा योद्धा नही था,तथापि उसने राष्ट्रकूट सामाज्य को संकटो से बहुत उबारा ।


अमोघवर्ष के बाद 878 ई. में उसका पुत्र "कृष्ण द्वितीय" राजा हुआ जिसके समय वेंगी के चालुक्यों से निरंतर युद्ध चलता रहा ।चालुक्यों को प्रारम्भिक संघर्षो में हराने बाद उसने बाजी मार ली ।उसका चोलो से भी युद्ध हुआ किन्तु उसने हार हुई ।914 ई. में कृष्ण की मृत्यु हो गई ।

कृष्ण तृतीय उत्तराधिकारी "इंद्र तृतीय" ने भी साहस और कुशलता का परिचय दिया ।उसने प्रतिहार राजा महिपाल को परास्त किया तथा कन्नौज को लूटा ।पूर्व चालुक्य नरेश विजयादित्य पंचम भी उसके हाथो मार गया ।९२२ ई. में उसकी अकाल मृत्यु के उपरान्त राष्ट्रकूट वंश का परामव नजदीक आ गया ।उसके बाद की राजा हुए जिनके राजयकाल में युद्ध चलते रहे ।

"कृष्ण तृतीय" इस वंश का अंतिम महान शासक हुआ जो 939 ई.में गद्दी पर बैठा ।उसने कांची और तंजोर पर अधिकार कर लिया ।कहा जाता है की कृष्ण तृतीय ने रामेश्वरम तक विजयपताका फहराई और एक विजय स्तम्भ खड़ा किया ।उत्तर में उसने उज्जैन को जीता और बुंदेलखंड तक घावे मारे ।कृष्ण तृतीय को उत्तर में चाहे विशेष सफलता न मिली हो ,पर सम्पूर्ण दक्षिण भारत में उसने अपनी निश्चित रूप से प्रभुता स्थापित कर दी ।

कृष्ण तृतीय के बाद 967 ई. उसका अनुज खोट्टिग राजा बना ।परमार नरेश सीयक से उसका भीषण युद्ध हुआ  ।विजयी सिंयक ने 972 ई. में राष्ट्रकूटों की राजधानी को दिल खोलकर लूटा  ।इस अपमान से अघात से खोट्टिक की शीघ्र ही मृत्यु हो गई ।  

तत्प्श्चात उसका भतीजा "कई द्वतीय" राजा बना ,किन्तु वह पतनोन्मुख राष्ट्रकूट साम्राज्य को बचा न सका।973 ई में उसके एक सामंत तैलप ने ,जो चलुक्य वंश का था ;हराकर दक्षिणापथ पर कब्जा कर लिया ।


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