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जुलाई 26, 2019

राजस्थान की वर्षा से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में (Important common knowledge related to the rain of Rajasthan in Hindi)

राजस्थान की वर्षा से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में 



1.  बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं मार्ग में वर्षा करते हुए जब राजस्थान में प्रवेश करती है तो उनमें विद्यमान आर्द्रता की मात्रा कम होती है।


2. राज्य में वर्षा की मात्रा दक्षिण-पूर्व व पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है।


3. अरब सागर से आने वाले मानसूनी हवाओं के लिए अरावली पर्वतमाला की दिशा समान्तर होने के कारण यह उन्हें रोक नहीं पाती है। जिससे ये राजस्थान में बहुत कम वर्षा करके निकल जाती है।


4. अरब सागर से आने वाले मानसूनी हवाओं से राज्य के दक्षिणी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।


5. राज्य में होने वाली कुल वर्षा का लगभग 34 प्रतिशत वर्षा जुलाई माह में तथा 33 प्रतिशत वर्षा अगस्त माह में होती है।


6. राज्य में वार्षिक वर्षा का औसत 57 सेमी है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी के मध्य है।


7. राज्य में वर्षा का समय तथा मात्रा अनिश्चिता के साथ ही वर्षा का वितरण भी असमान है।



राजस्थान की वर्षा से सम्बंधित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में

यह इस प्रकार है-

8.. सबसे न्यूनतम वर्षा 10 सेमी से भी कम पश्चिमी भाग (जैसलमेर के उत्तर पश्चिमी भाग) में होती है।
9. सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ है। इस जिले में लगभग 100 सेमी वर्षा होती है।

10.. अरावली के पश्चिमी जिलों में औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम है तथा पूर्वी जिलों में 50 से 100 सेमी के मध्य है।

11.. राज्य में वार्षिक वर्षा का सर्वाधिक औसत दक्षिणी अरावली व दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग में 90 सेमी से अधिक है।

12. राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान सिरोही जिले में माउंट आबू है जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 150 सेमी है।


14. राज्य में वर्षा के औसत दिनों की संख्या- 29 दिन।

15. सर्वाधिक औसत वर्षा दिनों की संख्या- माउंट आबू में 48 दिन

16. सर्वाधिक औसत वर्षा दिनों वाले जिले- झालावाड़

17. सबसे कम औसत वर्षा वाला जिला- जैसलमेर 5 दिन


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जुलाई 20, 2019

Common knowledge related to Rajasthan's political symbol

  राजस्थान के राजकीय चिन्ह से सम्बंधित सामान्य ज्ञान


  राजकीय भाषा - हिंदी


    राजकीय वृक्ष - खेजड़ी


खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।









    राजकीय पुष्प  - रोहिड़ा


रोहिड़ा बिगोनिएसी परिवार के टेकोमेला वंश का वृक्ष है। इसे रोहिरा, रोही, रोहिटका आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम टेकोमेला अनडयूलाटा है। अंग्रेजी में इसे रोहिरा ट्री और हनी ट्री कहते हैं। रोहिड़ा अरब देशों में भी पाया जाता है। यहां यह वृक्ष शजरत अल असल के नाम से प्रसिद्ध है।

 

राजस्थान का राज्य-पक्षी : गोडावण


गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ; वैज्ञानिक नाम : Ardeotis nigriceps) एक बड़े आकार का पक्षी है जो भारत के राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है। उड़ने वाली पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षियों में है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। सोहन चिड़िया, हुकना, गुरायिन आदि इसके अन्य नाम हैं।

यह पक्षी भारत और पाकिस्तान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क घास के मैदानों में पाया जाता है। पहले यह पक्षी भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्यों के घास के मैदानों में व्यापक रूप से पाया जाता था। किंतु अब यह पक्षी कम जनसंख्या के साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और संभवतः मध्य प्रदेश राज्यों में पाया जाता है। IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली लाल डाटा पुस्तिका में इसे 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है। इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का विज्ञापन "मेरी उड़ान न रोकें" जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। भारत सरकार के वन्यजीव निवास के समन्वित विकास के तहत किये जा रहे 'प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम (Species Recovery Programme)' के अंतर्गत चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी सम्मिलित है।











  राजकीय पशु - चिंकारा










    राज्य गीत - केसरिया बालम पधारो नी म्हारे देश


    राज्य दिवस - 30 मार्च


    राजकीय खेल - बास्केटबॉल


    राजकीय लोकनृत्य - घूमर


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जुलाई 20, 2019

राजस्थान के प्रमुख एवं दार्शनिक पर्यटन दुर्ग की महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में (Important General Knowledge of Rajasthan's Chief and Philosophical Tourism Fortress in Hindi)

 राजस्थान के प्रमुख एवं दार्शनिक पर्यटन   दुर्ग की महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान हिंदी में 

 

  कुम्भलगढ़ दुर्ग(राजसमंद)

अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि. संवत् 1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया।
इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की व देखरेख में हुआ।
इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है।
इस किले की ऊंचाई के बारे में अतृल फजल ने लिखा है कि " यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।"
कर्नल टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना "एस्टुकन"से की है।
इस दुर्ग के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चैड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे 'भारत की महान दीवार' भी कहा जाता है।
दुर्ग के अन्य नाम - कुम्भलमेर कुम्भलमेरू, कुंभपुर मच्छेद और माहोर।
कुम्भलगढ दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग भी स्थित है, जिसे कटारगढ़ कहते है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान रहा है।
महाराणा कुम्भा की हत्या उनके ज्येष्ठ राजकुमार ऊदा (उदयकरण) न इसी दुर्ग में की।
इस दुर्ग में 'झाली रानी का मालिका' स्थित है।
उदयसिंह का राज्यभिषेक तथा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआा है।

  बयाना दुर्ग (भरतपुर)

यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव न करवाया।
अन्य नाम- शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है।
अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।

दर्शनिय स्थल

1.भीमलाट- विष्णुवर्घन द्वारा लाल पत्थर से बनवाया गया स्तम्भ
2.विजयस्तम्भ- समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित स्तम्भ है।
3.ऊषा मंदिर 4. लोदी मीनार

  सिवाणा दुर्ग(बाड़मेर)

यह दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है।
कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है।
इस दुर्ग का निर्माण श्री वीरनारायण पवांर ने छप्पन की पहाडि़यों में करवाया।
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
1.पहला साका - सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण सांका हुआ।
2.दूसरा साका - वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।

  जालौर दुर्ग(जालौर)

प्राचीन नाम - जाबालीपुर दुर्ग तथा कनकाचल।
अन्य नाम- सुवर्णगिरी, सोनगढ़।
परमार शासकों द्वारा सुकडी नदी के किनारे निर्मित हैं
यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
यह दुर्ग सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग है।
साका
सन् 1311 ई. में कान्हड देव चैहान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। इस आक्रमण में कान्हडदेव चैहान व उसका पुत्र वीरदेव वीरगति को प्राप्त हुुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया।
इस साके की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हडदेव में मिलती है।
संत मल्किशाह की दरगाह इस दुर्ग के प्रमुख और उल्लेखनीय थी।


16 मंडरायल दुर्ग(सवाई माधोपुर)

इस दुर्ग को " ग्वालियर दुर्ग की कुंजी" कहा जाता है।
मंडरायल दुर्ग मर्दान शाह की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है।

 

  चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़गढ का किला राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से एक है यह मौर्य कालिन दुर्ग राज्य का प्रथम या प्राचीनतम दुर्ग माना जाता है।
अरावली पर्वत श्रृखला के मेशा पठार पर धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर विस्तृत यह दुर्ग राजस्थान के क्षेत्रफल व आकार की दुष्टी से सबसे विसालकाय दुर्ग है जिसकी तुलना बिट्रीश पुरातत्व दुत सर हूयूज केशर ने एक भीमकाय जहाज से की थी उन्होंने लिखा हैं-
"चित्तौड़ के इस सूनसान किलें मे विचरण करते समय मुझे ऐसा लगा मानों मे किसी भीमकाय जहाज की छत पर चल रहा हूँ"
चित्तौड़गढ दुर्ग ही राज्य का एकमात्र एसा दुर्ग है जो शुक्रनिती में वर्णित दुर्गों के अधिकांश प्रकार के अर्न्तगत रखा जा सकता है। जैसे गिरी दुर्ग, सैन्य दुर्ग, सहाय दुर्ग आदि।
इस किले ने इतिहास के उतार-चढाव देखे हैं। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है।चित्तौड़ के दुर्ग को 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।
एक किंवदन्मत के अनुसार पाण्डवों के दूसरे भाई भीम ने इसे करीब 5000 वर्ष पूर्व बनवाया था। इस संबंध में प्रचलित कहानी यह है कि एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकला तो उसे रास्ते में एक योगी निर्भयनाथ व एक यति(एक पौराणिक प्राणी) कुकड़ेश्वर से भेंट होती है। भीम ने योगी से पारस पत्थर मांगा, जिसे योगी इस शर्त पर देने को राजी हुआ कि वह इस पहाड़ी स्थान पर रातों-रात एक दुर्ग का निर्माण करवा दे। भीम ने अपने शौर्य और देवरुप भाइयों की सहायता से यह कार्य करीब-करीब समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ दक्षिणी हिस्से का थोड़ा-सा कार्य शेष था। योगी के ऋदय में कपट ने स्थान ले लिया और उसने यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा, जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी, जिससे वहाँ एक बड़ा सा गड्ढ़ा बन गया, जिसे लोग भी-लत तालाब के नाम से जानते है। वह स्थान जहाँ भीम के घुटने ने विश्राम किया, भीम-घोड़ी कहलाता है। जिस तालाब पर यति ने मुर्गे की बाँग की थी, वह कुकड़ेश्वर कहलाता है।
इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा।राजा बाप्पा रावल मौर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया। फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया। सन् 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह (सिद्धराज) ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया।जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को परास्त कर मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने सन् 1174 के आसपास पुनः गुहिलवंशियों का आधिपत्य स्थापित कर दिया।
सन् 1303 में यहाँ के रावल रतनसिंह की अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़ाई हुई। लड़ाई चितौड़ का प्रथम शाका के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया। खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हादेव के भाई मालदेव को सौंप दिया।चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल शहीद हुए।
बाप्पा रावल के वंशज राजा हमीर ने पुनः मालदेव से यह किला हस्तगत किया।सन् 1538 में चित्तौड़(शासक विक्रमादित्य ) पर गुजरात के बहादुरशाह ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध को मेवाड़ का दूसरा शाका के रूप में जाना जाता है।युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया। सन् 1567 में मेवाड़ का तीसरा शाका हुआ, जिसमें अकबर ने चित्तौड़(महाराणा उदयसिंह) पर चढ़ाई कर दी थी। चित्तौडगढ़ का तृतीय साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।तीसरे शाके के बाद ही महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ से हटाकर अरावली के मध्य पिछोला झील के पास स्थापित कर दी, जो आज उदयपुर के नाम से जाना जाता है।
इसमें प्रवेश के रास्ते से लेकर अन्दर के परिसर तक कई एक इमारतें हैं, जिनका संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है-

पाडन पोल

यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहाँ तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।

भैरव पोल (भैरों पोल)

पाडन पोल से थोड़ा उत्तर की तरफ चलने पर दूसरा दरवाजा आता है, जिसे भैरव पोल के रूप में जाना जाता है। इसका नाम देसूरी के सोलंकी भैरोंदास के नाम पर रखा गया है, जो सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से युद्ध में मारे गये थे।

हनुमान पोल

दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है।

गणेश पोल

हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है।

जोड़ला पोल

यह दुर्ग का पाँचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।

लक्ष्मण पोल

दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।

राम पोल

लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है।
इसके निकट ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है।

कीर्ति स्तम्भ(विजय स्तम्भ)

महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बनवाया था।
यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है।
इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है।
इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते हैं
विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूंजा को माना जाता है।

जैन कीर्ति स्तम्भ

जैन कीर्ति स्तम्भ 75 फीट ऊँचा, सात मंजिलों वाला एक स्तम्भ बना है, जिसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सा नांय के पुत्र जीजा ने करवाया था। यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट तथा ऊपरी हिस्से पर 15 फुट चौड़ा है तथा ऊपर की ओर जाने के लिए तंग नाल बनी हुई हैं।
जैन कीर्ति स्तम्भ वास्तव में आदिनाथ का स्मारक है

महावीर स्वामी का मंदिर

जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है।

नीलकंठ महादेव का मंदिर(समाधीश्‍वर मंदिर)

यह भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण11वीं शताब्‍दी के प्रारंभ में भोज परमार द्वारा करवाया था। बाद में मोकल ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार किया। मंदिर में एक गर्भगृह, एक अन्‍तराल तथा एक मुख्‍य मंडप है जिसके तीन ओर अर्थात् उत्‍तरी, पश्‍चिमी तथा दक्षिणी ओर मुख मंडप (प्रवेश दालान) हैं। मंदिर में भगवान शिव की त्रिमुखी विशाल मूर्ति स्‍थापित है।

कलिका माता का मन्दिर

राजा मानभंग द्वारा 9वीं शताब्‍दी में निर्मित यह मन्दिर मूल रूप से सूर्य को समर्पित है,

चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी

दुर्ग का अंतिम दक्षिणी बूर्ज चित्तौड़ी बूर्ज कहलाता है और इस बूर्ज के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि सन् 1567 ई. में अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊँचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी। अतः इसे मोहर मगरी कहा जाता है।
कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय,जयमल व कल्ला की छतरियाँ तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था) आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।


  अजयमेरू दुर्ग(तारागढ़)

बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस दुर्ग को गढ़बीठली के नाम से जाना जाता है।
यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है।
इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चैहान नरेश अजयराज ने करवाया।
मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वी राज (उड़ाणा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।

रूठी रानी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही।
तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे "राजस्थान का जिब्राल्टर " अथवा "पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर" कहा है।
इतिहासकार हरबिलास शारदा ने "अखबार-उल-अखयार" को उद्घृत करते हुए लिखा है, कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।
तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।
रूठी रानी का वास्तविक नाम उम्रादे भटियाणी था।

  तारागढ दुर्ग(बूंदी)

इस दुर्ग का निर्माण देवसिंह हाड़ा/बरसिंह हाड़ा ने करवाया।
तारे जैसी आकृति के कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा।
यह दुर्ग "गर्भ गुंजन तोप" के लिए प्रसिद्ध है।
भीम बुर्ज और रानी जी की बावड़ी (राव अनिरूद्ध सिंह) द्वारा इस दुर्ग मे स्थित हैं
रंग विलास (चित्रशाला) इस दुर्ग में स्थित हैं।
रंग विलास चित्रशाला का निर्माण उम्मेद सिंह हाड़ा ने किया।
इतिहासकार किप्ल्रिन के अनुसार इस किले का निर्माण भूत-प्रेत व आत्माओं द्वारा किया गया। तारागढ दुर्ग (बूंदी) भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध किया जाता है।

  रणथम्भौर दुर्ग(सवाई माधोपुर)

सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था।
हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर(एकमात्र जल जौहर) कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
रणथम्भौर किले में बने हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी,सुपारी महल(सुपारी महल में एक ही स्थान पर मन्दिर और गिर्जाघर स्थित है।), बादल महल, बत्तीस खंभों की छतरी, जैन मंदिर तथा त्रिनेत्र गणेश मंदिर उल्लेखनीय हैं। रणथम्भौर दुर्ग मे लाल पत्थरों से निर्मित 32 कम्भों की एक कलात्मक छत्रि है जिसका निर्माण हम्मिर देव चौहन ने अपने पिता जेत्र सिंह के 32 वर्ष के शासन के प्रतिक के रूप में करवाया था।

  मेहरानगढ़ दुर्ग(जोधपुर)

राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव मई, 1459 में रखी गई।
मेहरानगढ़ दुर्ग चिडि़या-टूक पहाडी पर बना है।
मोर जैसी आकृति के कारण यह किला म्यूरघ्वजगढ़ कहलाता है।

दर्शनिय स्थल

1.चामुण्डा माता मंदिर -यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया।
1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह न करवाया।
2.चैखे लाव महल- राव जोधा द्वारा निर्मित महल है।
3.फूल महल - राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल है।
4. फतह महल - इनका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।
5. मोती महल - इनका निर्माता सूरसिंह राठौड़ को माना जाता है।
6. भूरे खां की मजार
7. महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय)
8. दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चैकी (श्रृंगार चैकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था।
दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उन्ति - " जबरों गढ़ जोधाणा रो"
ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि - इस दुर्ग का निर्माण देवताओ, फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।
दुर्ग में स्थित प्रमुख तोपें- 1.किलकिला 2. शम्भू बाण 3. गजनी खां 4. चामुण्डा 5. भवानी

  सोनारगढ़ दुर्ग(जैसलमेर)

इस दुर्ग को उत्तर भड़ किवाड़ कहते है।
यह दुर्ग धान्व व गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
यह दुर्ग त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर बनी है।
दुर्ग के अन्य नाम - गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़
स्थापना -राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. में हुआ।
दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।
पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है।
इस किले में 99 बुर्ज है।
यह दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा फोर्ट है।
जैसलमेर दुर्ग की सबसे प्रमुख विशेषता इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जो जिनभद्र कहलाता है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया गया।
आॅस्कर विजेता " सत्यजीतरे" द्वारा इस दुर्ग फिल्म फिल्माई गई।
जैसलमेर में ढाई साके होना लोकविश्रुत है।
1.पहला साका - दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के मध्य युद्ध हुआ।
2.द्वितीय साका - फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण रावल दूदा व त्रिलोक सिंह के नेतृत्व मे वीरगति प्राप्त की।
3.तीसरा साका - जैसलमेर का तीसरा साका जैसलमेर का अर्द्ध साका राव लूणसर में 1550 ई. में हुआ।
आक्रमणकत्र्ता कन्द शासक अमीर अली था।
प्रसिद्व उक्ति
गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरा, अधगढ़ बीकानेर।
भलो चिणायों भाटियां, गढ ते जैसलमेर।
अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि केवल पत्थर की टांगे ही यहां पहुंचा सकती है।

  मैग्जीन दुर्ग(अजमेर)

यह दुर्ग स्थल श्रेणी का है।
मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित है।
इस दुर्ग को " अकबर का दौलतखाना" के रूप में जाना जाता है।
पूर्णतः मुस्लिम स्थापत्य कला पर आधारित है।
सर टाॅमस ने सन् 1616 ई. में जहांगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में प्रस्तुत किया।

  आमेर दुर्ग-आमेर (जयपुर)

यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
इसका निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह ने करवाया।
यह किला मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
1.शीला माता का मंदिर 2 सुहाग मंदिर 3 जगत सिरोमणि मंदिर

प्रमुख महल


1. श्शीश महल 2.दीवान-ए-खाश 3. दीवान-ए-आम
विशेष हैबर आमेर के महलों की सुंदरता के बारे में लिखता है कि " मैने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रह्राा के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है।"
मावठा तालाब और दिलारान का बाग उसके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते है। 'दीवान-ए-आम' का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह द्वारा किया गया।

  जयगढ दुर्ग(जयपुर)

यह दुर्ग चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जययसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है।
सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।
आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री श्री मति इन्द्रागांधी ने खजाने की प्राप्ति के लिए किले की खुदाई करवाई गई।
विजयगढ़ी भवन (अंत दुर्ग) कच्छवाह शासकों की शान है।

  नहारगढ दुर्ग(जयपुर)

इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया।
किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है।
नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नहारगढ़ रखा गया।
राव माधों सिंह - द्वितीय ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए एक किले का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।

  गागरोण दुर्ग(झालावाड़)

झालावाड़ से चार किमी दूरी पर अरावली पर्वतमाला की एक सुदृढ़ चट्टान पर कालीसिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा अनूठा किला है।
इस किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था।
डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से जाना गया।
"चैहान कुल कल्पद्रुम" के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू न अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा।
यह दुर्ग शौर्य ही नहीं भक्ति और त्याग की गाथाओं का साक्षी है। संत रामानन्द के शिष्य संत पीपा इसी गागरोन के शासक रहे हैं, जिन्होंने राजसी वैभव त्यागकर राज्य अपने अनुज अचलदास खींची को सौंप दिया था। सन् 1423 ई. में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के मध्य भीष्ण युद्ध हुआ। अचलदास खींची वीरगति को प्राप्त हुवे| उनकी रानी और दुर्ग की अनेक ललनाओं ने अपने आप को जौहर की अग्नि में झोक दिया|जिसे गागरोन का प्रथम शाका कहते है|
राजा अचल दास ने वंश की रक्षा के लिए अपने पुत्र पाल्हणसी को दुर्ग से पलायन करवाया जिसके साथ राजा अचलदास के राज्यकवि शिवदास गाडण भी दुर्ग से निकल गए और बाद में उन्होंने राजा अचलदास की वीरता और शौर्य से प्रेरित होकर कालजयी ग्रन्थ “ अचलदास खिंची री वचनिका “ की रचना की थी जिससे अचलदास के जीवन और व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है|
राणा कुम्भा ने मांडू के सुलतान को पराजित कर गागरोन दुर्ग भी हस्तगत कर इसे अपने भांजे पाल्हणसी को सौप दिया
सन् 1444 ई. में पाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुर्ग से पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) के नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया।जिसे गागरोन का दूसरा शाका भी कहते है| विजय के उपरान्त सुलतान ने दुर्ग का नाम मुस्तफाबाद रखा गागरोन में मुस्लिम संत पीर मिट्ठे साहब की दरगाह भी है, जिनका उर्स आज भी प्रतिवर्ष यहाँ लगता है।

दर्शनीय स्थल:

1.संत पीपा की छत्तरी 2. मिट्ठे साहब को दरगाह

तथ्य

जैतसिंह के शासनकाल में खुरासान से प्रसिद्ध सूफीसंत हमीदुद्दीन चिश्ती (मिट्ठे साहब) गागरोण आए।
3.जालिम कोट परकोटा 4. गीध कराई
महमूद खिलजी ने विजय के उपरांत दुर्ग का नाम बदल कर मुस्तफाबाद रखा।
अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।
विद्वानों के अनुसार इस पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्व ग्रन्थ "वेलिक्रिसन रूकमणीरी" गागरोण में रहकर लिखा।



  भैंसरोड़गढ दुर्ग(चित्तौड़गढ)

बामणी व चम्बल नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
भैंसरोडगढ़ दुर्ग को "राजस्थान का वेल्लोर" कहते है।
इस दुर्ग का निर्माता भैसाशाह व रोडावारण को माना जाता है।

  मांडलगढ़ दुर्ग(भीलवाडा)

इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया।
यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
मांडलगढ़ दुर्ग बनास, बेडच व मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है।
यह दुर्ग सिद्ध योगियों का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है।

  भटनेर दुर्ग(हनुमानगढ़)

इस दुर्ग का निर्माण सन् 285 ई. में भाटी राजा भूपत ने करवाया।
घग्धर नदी के मुहाने पर बसे इस, प्राचीन दुर्ग को " उत्तरी सीमा का प्रहरी" कहा जाता है।
भटनेर दुर्ग धान्वन श्रेणी का दुर्ग है।
इस दुर्ग पर सर्वाधिक आक्रमण हुए। विदेशी आक्रमणकारियों में
1.महमूद गजनवी न विक्रम संवत् 1058 (1001 ई.) में भटनेर पर अधिकार कर लिया था।
2.13 वीं शताब्दी के मध्य में गुलाम वंश के सुल्तान बलवन के शासनकाल में उसका चचेरा भाई शेर खां यहां का हाकिम था।
3.1398 ई. में भटनेर को प्रसिद्ध लुटेरे तैमूरलंग के अधिन विभीविका झेलनी पड़ी।
बीकानेर के चैथे शासक राव जैतसिंह ने 1527 ई. में आक्रमण कर भटनेर पर पहली बार राठौडों का आधिपत्य स्थापित हुआ। उसने राव कांधल के पोत्र खेतसी को दुर्गाध्यक्ष नियुक्त किया
4.ह्रमायू के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया।
सन् 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार को जाब्ता खां भट्टी से भटनेर दुर्ग हस्तगत कर लिया। भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा गया।
तैमूर लंग ने इस दुर्ग के लिए कहा कि " उसने इतना व सुरक्षित किला पूरे हिन्तुस्तान में कहीं नही देखा।" तैमूरलग की आत्मकथा " तुजुक-ए-तैमूरी "के नाम से है।
यह दुर्ग 52 बीघा भूमि पर निर्मित है।
6380 कंगूरों के लिए प्रसिद्ध है।
इस दुर्ग में शेर खां की मनार स्थित है।

  भरतपुर दुर्ग(भरतपुर)

इस दुर्ग का निर्माण सन् 1733 ई. में राजा सूरजमल ने करवाया था।
मिट्टी से निर्मित यह दुर्ग अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है।
किले के चारों ओर सुजान गंगा नहर बनाई गई जिसमे पानी लाकर भर दिया जाता था।
यह दुर्ग पारिख श्रेणी का दुर्ग है।
मोती महल, जवाहर बुर्ज व फतेह बुर्ज (अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक है।)
सन् 1805 ई. में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन असफल रहा।
इस दुर्ग में लगा अष्टधातू का दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ई. में ऐतिहासिक लाल किले से उतार लाए थे।

  चुरू का किला (चुरू)

धान्व श्रेणी के इस दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने करवाया।
महाराजा शिवसिंह के समय बारूद खत्म होने पर यहां से चांदी के गोले दागे गए।

  जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)

यह दुर्ग धान्व श्रेणी का दुर्ग हैं।
लाल पत्थरों से बने इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के प्रतापी शासक रायसिंह ने करवाया।
इस दुर्ग की निर्माण शैली में मुगल शैली का समन्वय है।
इस दुर्ग को अधगढ़ किला कहते हैं।
इस दुर्ग में जैइता मुनि द्वारा रचित रायसिंह , प्रशस्ति स्थित है।
सूरजपोल की एक विशेष बात यह है कि इसके दोनों तरफ 1567 ई. के चित्तौड़ के साके में वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरों जयमल मेडतियां और उनके बहनोई आमेर के रावत पता सिसोदिया की गजारूढ मूर्तियां स्थापित है।

दर्शनिय स्थल

1.हेरम्भ गणपति मंदिर 2. अनूपसिंह महल 3. सरदार निवास महल

  नागौर दुर्ग(नागौर)

नागौर दुर्ग के उपनाम नागदुर्ग, नागाणा व अहिच्छत्रपुर है।
इस दुर्ग का निर्माण चैहान वंश के शासक सोमेश्वर ने किया।
अमर सिंह राठौड़ की वीर गाथाएं इस दुर्ग से जुडी है।
नागौर दुर्ग को एक्सीलेंस अवार्ड मिला है।

  अचलगढ़ दुर्ग(सिरोही)

परमार वंश के शासकों द्वारा 900 ई. के आसपास निर्मित किया गया।
इस दुर्ग को आबु का किला भी कहते हैं

दर्शनीय स्थल

1.अचलेश्वर महादेव मंदिर- शिवजी के पैर का अंगूठा प्रतीक के रूप में विद्यमान है।
2.भंवराथल - गुजरात का महमूद बेगडा जब अचलेश्वर के नदी व अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर लौट रहा था तब मक्खियों न आक्रमणकारियों पर हमला कर दिया।
इस घटना की स्मृति में वह स्थान आज भी भंवराथल नाम से प्रसिद्ध है।
3.मंदाकिनी कुण्ड - आबू पर्वतांचल में स्थित अनेक देव मंदिरों के कारण आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा जाता है।

  शेरगढ़ दुर्ग(धौलपुर)

इस दुर्ग का निर्माण कुशाण वंश के शासन काल में करवाया था।
शेरशाह सूरी ने इस दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।
यह किला "दक्खिन का द्वार गढ" नाम से प्रसिद्ध है।
महाराजा कीरतसिंह द्वारा निर्मित "हुनहुंकार तोप" इसी दुर्ग में स्थित है।

  शेरगढ़ दुर्ग(बांरा)

यह दुर्ग परवन नदी के किनारे स्थित है।
हाडौती क्षेत्र का यह दुर्ग कोशवर्धन दुर्ग के नाम से भी प्रसिद्ध है।

  चैमू का किला (जयपुर)

इस किले का निर्माण ठाकुर कर्णसिंह ने करवाया।
उपनाम- चैमूहांगढ़, धाराधारगढ़ तथा रधुनाथगढ।

  कांकणबाडी का किला (अलवर)

इस किले में औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह को कैद करके रखा था।

अन्य दुर्ग

 कोटडा का किला - बाडमेर
 खण्डार दुर्ग-सवाई माधोपुर-शारदा तोप इस दुर्ग में स्थित है।
 माधोराजपुरा का किला - जयपुर
 कंकोड/कनकपुरा का किला - टोंक
शाहबाद दुर्ग - बांरा -नवलवान तोप इस दुर्ग में स्थित है।
 बनेडा दुर्ग - भीलवाडा
 बाला दुर्ग - अलवर
 बसंतगढ़ किला - सिरोही
तिमनगढ़ किला - करौली

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जुलाई 18, 2019

राजस्थान प्रमुख लोक गीत/संगीत हिंदी में सामान्य ज्ञान(Rajasthan Common Folk Song / Music General Knowledge in Hindi)

राजस्थान प्रमुख  लोक गीत/संगीत हिंदी में सामान्य ज्ञान (Rajasthan Common Folk Song / Music General Knowledge in Hindi)







हीड::यह गीत मेवाड क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर आदिवासी लोग समूह रूप में घर-घर जाकर एक गाथा के रूप में गाते है हीड़ का तात्पर्य दीपक होता है ।

हूंस::इस गीत के माध्यम से राजस्थान गर्भवती महिला को दो जीवों वाली कहते है । हूंस का अर्थ गर्भवती की इच्छा होती है इस तरह के गीतों में घेवर, केरी मत्तीरा फली एवं बेर की इच्छापूर्ति के गीत गाते है ।

हर का हिंडोला::यह गीत किसी वृद्ध की मृत्यु के अवसर पर गाया जाता हैं ।

दारूडी::यह गीत रजवाडों में शराब पीते समय गाया जाता है

दुपट्टा::यह गीत दूल्हे की सालियों द्वारा गाया जाता है ।

धुंसो/धुंसा::यह मारवाड़ का राज्य गीत है । इस गीत में अजीत सिंह की धाय माता गोरा धाय का वर्णन है ।

घूमर::यह गणगौर के त्यौहार व विशेष पर्वो तथा उत्सवों पर मुख्य रूप से गाया जाता है ।

घुड़ला::यह मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला त्यौहार के अवसर पर कन्याओं द्वारा गाया जाने चाला लोकगीत हैं ।

घुघरी::बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।

घोडी::लडके के विवाह के अवसर पर निकासी के समय गाया जाने वाला गीत है ।

रतन राणा::यह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोढा राणा रतन सिंह का गीत है । यह पश्चिमी क्षेत्र में गाया जाने वाला सगुन भक्ति का गीत है ।

रातिजगा::रातभर जाग कर गाये जाने वाले गीत रातिजगा गीत कहलाते है ।

रसिया:: यह गीत भरतपुर, धौलपुर मे गाया जाता है ।

जलो और जलाल/जला::    वधू के घर जब स्त्रियाँ वर की बारात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है ।

जीणमाता का गीत::यह गीत राजस्थान के समस्त गीतों में सबसे लम्बा लोक गीत है । इस गीत में भाईं-बहन के प्रेम, पहाडों की तपस्या, मन्नतों का पूरा होना और आक्रमणकारियों से क्षेत्र की रक्षा का वर्णन किया जाता है

जकडियां::यह पीर ओलियों की प्रशंसा में गाया जाने वाला धार्मिक गीत है । राजस्थानी मुस्लिम समाज मे इन गीतों का प्रचलन सर्वाधिक है ।

जच्चा::यह गीत पुत्र जन्म के अवसर पर गाया जाता है, इसका अन्य नाम होलर है ।

जीरो:: इस गीत में पत्नी अपने पति को जीरे की खेती न करने का अनुरोध करती है ।

चरचरी;::ताल और नृत्य के साथ उत्सव में गाई जाने वाली रचना 'चरचरी' कहलाती है ।

चाक गीत::विवाह के समय स्त्रियों द्वारा कुम्हार के घर जाकर पूजने (घड़ा) के समय गाया जाता है ।

चिरमी::यह गीत चिरमी पौधे को सम्बोधित करके नववधु द्वारा भाई व पिता की प्रतीक्षा में गाया जाता है ।

हींडा:: यह गीत सहरिया जनजाति में दीपावली के अवसर पर गाया जाता है ।

लहंगी::यह गीत जनजाति के द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाता है ।

आल्हा::यह गीत सहरिया जनजाति के द्वारा वर्षा वस्तु में गाया जाता है ।

चौबाली>>राजस्थानी लोकगीतों का संस्मरण चौबाली कहलाता है ।

रामदेवजी के गीत---लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है ।


 आंगो मोरियों::यह एक राजस्थानी लोक गीत है , जिसमें पारिवारिक सुख का चित्रण मिलता है ।

औल्यूँ::यह किसी की याद में गाया जाने वाला गीत है ।

आंबो::यह गीत पुत्री की विदाई पर गाया जाता है ।

अजमो::यह गीत गर्भावस्था के आठवें महीने में गाया जाता है ।

इडूणी::यह गीत स्त्रियां पानी भरने जाते समय गाती है ।

उमादे:::राजस्थान में यह रूठी रानी का गीत है ।

ढोलामारू::यह सिरोही का प्रेमकथा पर आधारित गीत है । इसे ढाढी गाते है । इसमें ढोला मारू की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है ।

झोरावा::जैसलमेर जिले में पति के प्रदेश जाने पर उसके वियोग मे गाया जाने वाला गीत है ।

झूलरिया::यह गीत माहेरा या भात भरते समय गाया जाता है ।

फतमल::यह गीत हाड़ौती के राव फतहल तथा उसकी टोडा की रहने वाली प्रेमिका की भावनाओं से संबंधित है ।

फतसड़ा::विवाह के अवसर पर अतिथियों के आगमन पर यह गीत गाया जाता है ।

फाग::यह होली के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।

तेजा::यह तेजाजी की भक्ति में खेत की बुवाई/जुताई करते समय गाया जाता है ।


मोरिया थाईं रे थाईं::इस गरासिया गीत में दूल्हे की प्रशंसा की जाती है और महिलाएं इसके इर्द गिर्द नृत्य करती है ।

मरसिया::मारवाड़ क्षेत्र मे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मृत्यु के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।

मोरिया::इसमें ऐसी बालिका की व्यथा है, जिसका संबंध तो तय हो चुका है, लेकिन विवाह में देरी है यह एक विरह गीत है । मोरिया का अर्थ मोर होता है ।

माहेरा::बहिन के लडके या लडकी की शादी के समय भाई उसको चूनडी ओंढाता है और भात भरता है । अतः इस प्रसंग से संबधित गीत भात/माहेरा के गीत कहलाते है ।

मूमल::जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारित एव प्रेम गीत है । मूमल लोद्रवा ( जैसलमेर ) की राजकुमारी थी ।

लाखा फुलाणी के 'गीत-::ये गीत मध्यकाल से प्रारंभ माने जाते है और इनकी उत्पत्ति सिंध प्रदेश से हुई थी ।

लांगुरिया::करौली क्षेत्र की कुल देवी 'केला देवी' की आराधना में गाए जाने वाले ये भक्ति गीत है ।

लसकरिया::लसकरिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।

बीन्द::बीन्द गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता हैं

रसाला::रसाला गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।

रमगारिया::रमगारिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।

लावणी::लावणी का अर्ध बुलाने से है । नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के लिए यह गीत गाया जाता है । मोरध्वज, ऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियां है ।

लूर::यह राजपूत स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।

लोरी::ये गीत माँ द्वारा अपने बच्चे को सुलाने के लिए गाती है ।

गोरबंद::यह गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है । गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है । राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों विशेषत: मरूस्थली व शेखावाटी क्षेत्रों में लोकप्रिय 'गोरबन्द' गीत प्रचलित है ।

गोपीचन्द::इसमें बंगाल के शासक गोपीचन्द द्वारा अपनी रानियों के साथ किया संवाद चर्चित है ।

गणगौर::गणगौर के अवसर पर गाया जाने वाला गीत । राज्य में सर्वाधिक गीत इसी अवसर पर गाये जाते है ।

गढ़::ये गीत सामन्तो राज दरबारों और अन्य समृद्ध लोगों द्वारा आयोजित महफिलों में गाए जाते है । ये रजवाडी व पेशेवर गीत है । ढोली दमापी मुसलमान तवायफें इन गीतों को गाते है ।

बना-बन्नी::विवाह के अवसर पर वार-वधू के लिए ये गीत गाये जाते है ।

बीणजारा::यह एक प्रश्नोत्तर परक गीत है । इस गीत में पत्नी पति को व्यापार हेतु प्रदेश जाने की प्रेरणा देती है ।



विनायक::विनायक मांगलिक कार्यो के देवता है किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले विनायक (गणेशजी की पूजा) पूजा कर गीत गाये जाते है ।

बंधावा::यह शुभ कार्यं के सम्पत्र होने पर गाया जाने वाला लोकगीत है ।

बादली गीत::बादली गीत शेखावाटी, मेवाड़ व हाडौती क्षेत्र में गाया जाने वाला वर्षा ऋतु से संबंधित गीत है ।

बीरा गीत::बीरा नामक लोकगीत ढूंढाड़ अंचल में भात सम्पन्न होने के समय गाया जाता है ।

बेमाता गीत:: नवजात शिशु का भाग्य लिखने वाली बेमाता के लिए यह गीत गाया जाता है ।

भणेत::राजस्थान में श्रम करते समय परिश्रम से होने वाली थकान को दूर करने के लिए इस गीत को गाया जाता हैं ।

पडवलियों::बालक के जन्म होने के पश्चात बालमनुहार के लिए गाये जाने वाला गीत है । पडवलियों का अर्थ घास से बनाया हुआ छोटा मकान होता है

पणिहारी::पनघट से पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते है । इस गीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रत धर्म पर अटल रहना बताया गया है ।

परणेत::इस गीत का सम्बन्थ विवाह से है । राजस्थान में विवाह के गीत सबसे अधिक प्रचलित है । परणेत के गीतों में बिदाई के गीत बहुत ही मर्म स्पर्शी होते है ।

पावणा::यह गीत दामाद के ससुराल आगमन पर गाया जाता है ।

पपैया::पपैया एक प्रसिद्ध पक्षी है । इसमें एक युवती किसी विवाहित युवक को भ्रष्ट करना चाहती है, किन्तु युवक उसको अन्त में यही कहता है कि मेरी स्त्री ही मुझे स्वीकार होगी । अत: इस आदर्श गीत में पुरूष अन्य स्त्री से मिलने के लिए मना करता है ।

पंछीड़ा::यह गीत हाडौती व ढूंढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाता है ।

पवाड़ा::किसी महापुरूष, वीर के विशेष कार्यों को वर्णित करने वाली रचनाएं 'पवाडा' कहलाती है ।

पटैल्या::यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।

बिछिया::यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।

लालर::यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।

पीपली::यह रेगिस्तानी क्षेत्र विशेषत: शेखावाटी, बीकानेर, मारवाड़ के कुछ भागों में स्त्रियों द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला लोकगीत है । इसमें प्रेयसी अपने परदेश गये पति को बुलाती है । यह तीज के त्यौहार के कुछ दिन पूर्व गाया जाता है ।

पीठी::विवाह के अवसर पर दोनों पक्ष के यहाँ वर-वधु को नहलाने से पूर्व पीठी या उबटन लगाते है, जिससे उनमें रूपनिखार आए, उस समय 'पीठी गीत' गाया जाता है । यह कार्य भौजाई (भाभी) द्वारा किया जाता हैं ।

सुपियारदे::इस गीत में त्रिकोणीय प्रेम कथा का वर्णन किया गया है ।

पील्लो गीत::यह शिशु जन्म के पश्चात जलवा पूजन के समय गाया जाता है ।

सुवंटिया::इस गीत में भील स्त्री द्वारा परदेश गये पति को संदेश भेजती है ।

सहसण या सैंसण माता के गीत::सैंसण माता का जैन धर्म के तेरापंथी संप्रदाय में भारी महत्व है । जैन श्रावकों की निराहार तपस्या के दौरान सहसण माता के गीत गाये जाते है ।

सुपणा::यह विरहणी का एक स्वप्न गीत है । इस गीत के द्वारा रात्रि में आये स्वप्न का वर्णन किया जाता हैं ।

सींठणा/सीठणी:: विवाह के अवसर पर भोजन के समय गाये जाने वाले गीत सीठणा गाली गीत है ।

सेजा::इसमें प्रकृति पूजन, लोकगीत, परम्परा , कला और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है । इसमें कुँवारियां श्रेष्ठ वर की कामना, अखण्ड सौभाग्य एवं सुखी दामपत्य जीवन की शुभेच्छा से पूजा अर्चना करती है ।

सारंग::यह संगीत दोपहर के समय में गाया जाता है ।

केसरिया बालम::यह राज्य गीत है । इस गीत के माध्यम से प्रदेश गये पति को आने का संदेश भेजा जाता है ।

कांगसियो::यह बालों के श्रृंगार का गीत है ।

काजलियौ::भारतीय संस्कृति में काजल सोलह श्रृंगारो में से एक श्रृंगारिक गीत हैं । यह विवाह के समय वर की आँखों में भोजाई काजल डालते समय गाती है ।

कोयलडी::परिवार की स्त्रियां वधू को विदा करते समय विदाई गीत कोयलडी गाती है ।

कुकड़लू::शादी के अवसर पर जब दूल्हा तोरण पर पहुंचता है तो महिलाएं ये गीत गाती है ।

कामण::राजस्थान के कई क्षेत्रों मे वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाये जाने वाले गीत कामण कहलाते है ।

कलाकी::कलाकी एक वीर रस प्रधान गीत है ।

कलाली:: कलाली लोग शराब निकालने और बेचने का काम करते है । ये ठेकेदार होते है । कलाली गीत में सवाल-जवाब है । इस गीत में श्रृंगारिक एवं मन 'की चंचलता दिखाई देती है ।

कुरंजा::राजस्थानी लोक जीवन में विरहणी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरंजा पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है ।

कुकडी::यह रात्रि जागरण का अंतिम गीत होता है ।

केवडा::केवडा एक वृक्ष है । यह प्रेयसी द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।

काछबा::यह प्रेम गाथा पर आधारित लोक गीत है, जो पश्चिमी राजस्थान मे गाया जाता है ।

कागा::इसमें विरहणी नायिका कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मानती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है ।

हिन्डो/हिन्डोल्या::श्रावण मास मे राजस्थानी महिलाएं झूला झूलते समय यह लालित्यपूर्ण गीत गाती है ।

हमसीढ़ो::उत्तरी मेवाड़ में भीलों का प्रसिद्ध लोकगीत है । इसे स्त्री-पुरुष साथ मिलकर गाते है ।

हरजस::राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला सगुण भक्ति का लोकगीत है, जिसमें राम और कृष्णा की लीलाओं का वर्णन है । यह गीत शेखावाटी क्षेत्र में किसी को मृत्यु के अवसर पर गाया जाता है ।

हालरिया::यह जैसलमेर मे बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।

हिचकी::किसी के द्वारा याद किये जाने पर हिचकी आती है । उस समय गाया जाने वाला गीत हिचकी गीत है ।

हरणी::यह गीत दीपावली के त्यौहार पर 10-15 दिन पहले मेवाड क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों की टोलीयों द्वारा घर-घर जाकर गाया जाता है इसे लोवडी गीत भी कहते है । इस गीत के द्वारा बच्चे दीपावली पर खर्च करने के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा एकत्रित करते है ।

होलर::यह गीत पुत्र जन्म से संबंधित है


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जुलाई 18, 2019

राजस्थान के प्रमुख मेलों से समबन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी में(Important questions related to the major fairs of Rajasthan in Hindi)

 राजस्थान  के प्रमुख  मेलों से समबन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी में




 प्रश्न   गीर नस्ल के लिए विशेष रूप से आयोजित होने वाला मेला स्थल है-

 उत्तर.  'अजमेर'

प्रश्न   निम्न में से कौनसा पशु मेला भरतपुर में आयोजित होता है-

 उत्तर.  'श्री जसवंत पशु मेला'

प्रश्न   हिण्डोला महोत्सव किस जगह मनाया जाता है-

 उत्तर.  'पुष्कर'

प्रश्न  एडवेंचर स्पोर्टस के आयोजन के लिए चयनित जिले है-

 उत्तर.  'कोटा-बूंदी'

प्रश्न  ख्वाजा मुइनुदीन चिश्ती का उर्स किस जिले में मनाया जाता है-

 उत्तर.  'अजमेर'

प्रश्न   अक्टुबर माह में डिग्गी के कल्याणजी का मेला किस जिले में आयोजित होता है-

 उत्तर.  'टोंक'

प्रश्न   फाल्गुन की शिवरात्री का आयोजन बडे़ स्तर पर शिवाड़ में होता है। यह राजस्थान के किस जिले में होता है-

 उत्तर.  'सवाईमाघोपुर'


प्रश्न   आदिवासियों का प्रसिद्ध मानगढ़ मेला का बांसवाड़ा में किस तिथि को आयोजित होता है-

 उत्तर.  'मार्गशीर्ष पूणिमा'

प्रश्न   चन्द्रभागा मेले का आयोजन किस जिले में होता है-

 उत्तर.  'झालावाड़'

प्रश्न    शरद पूर्णिमा को चितोड़गढ़ में आयोजन होता है-

 उत्तर.  'मीरा महात्सव का'

प्रश्न   कोटा में दशहरा मेला कब आयोजित होता है-

 उत्तर.  आश्विन शुक्ला दशमी

प्रश्न   खेजड़ली शहीदी मेला किस जिले मे आयोजित होता है-

 उत्तर.  जोधपुर

प्रश्न   भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को रणथम्भौर में किस देवता का मेला लगता है-

 उत्तर.  श्री गणेश जी

प्रश्न    रामदेवरा का मेला मुख्य रूप से कब से कब तक आयोजित होता है-

 उत्तर.  भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से शुक्ला एकादशी

प्रश्न    नाथद्वारा में भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को लगने वाला मेला है-

 उत्तर.  जन्माष्टमी मेला

प्रश्न  मांगलिया वास अजमेर में श्रावण अमावस्या को कोनसा मेला लगता है-

 उत्तर.  कल्पवृक्ष मेला

प्रश्न  राश्मी चितौड़गढ़ में आयोजित होने वाला मातृकुण्डिया मेला किस तिथि को आयोजित होता है-

  उत्तर.  वैशाखपूर्णिमा

प्रश्न   चैत्र शुक्ला एकादशी को आयोजित होने वाला सेवडि़या पशु मेला कहां आयोजित होता है-

 उत्तर.  सिरोही

प्रश्न   मारवाड़ का घुडला मेला कब आयोजित होता है-

 उत्तर.  चैत्र शुक्ला तृतिया

प्रश्न   चैत्र कृष्णा अष्टमी को जयपुर में कोनसा मेला आयोजित होता है-

 उत्तर.  शीतला माता का

प्रश्न   भाद्रपद शुक्ल एकादशी को आयोजित होने वाला फूलडोल मेला कहां आयोजित होता है-

 उत्तर.  बारा

प्रश्न  फूल डोल मेला जो कि चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पचमी तक आयोजित होता है।इसका आयोजन कहां किया जाता है-

 उत्तर.  भीलवाड़ा

प्रश्न    निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए –

 उत्तर.  मरु महोत्सव – बाड़मेर'

प्रश्न    धौलागढ़ देवी का मेला राजस्थान के किस जिले से जुड़ा है -

 उत्तर.  अलवर'

प्रश्न    ‘चन्द्रभागा मेला’ राजस्थान के निम्नलिखित में से किस जिले में आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  झालावाड़'

प्रश्न    ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किस क्षेत्र से है -

 उत्तर.  गायन'

प्रश्न    निम्न में से असंगत युग्म को छांटिए -

 उत्तर.  ऊंट महोत्सव - जैसलमेर'

प्रश्न    वीर तेजाजी पशु मेला आयोजित होता है -

 उत्तर.  परबतसर में'

प्रश्न    वृक्षों के संरक्षण से संबंधित मेला कौनसा है -

 उत्तर.  खेजडली का मेला'
/>प्रश्न    गोगाजी का मेला किस माह में भरता है -

 उत्तर.  भाद्रपद'

प्रश्न    'आदिवासियों का कुम्भ' किस मेले को कहा जाता है -

 उत्तर.  बेणेश्वर मेला'

प्रश्न   पुष्कर का मेला किस तिथि को भरता है -

 उत्तर.  कार्तिक पूर्णिमा'

प्रश्न    राजस्थान का प्रसिद्ध बेणेश्वर मेला किस माह में भरता है -

 उत्तर.  माघ'

प्रश्न    कौनसा मेला वर्ष में दो बार आयोजित होता है -

 उत्तर.  करणी माता'

प्रश्न   फूलडोल-उत्सव मनाया जाता है -

 उत्तर.  रामस्नेही पंथ द्वारा'

प्रश्न  केसरियानाथ का मेला कहाँ आयोजित होता है -

 उत्तर.  धुलेव'

प्रश्न    जयपुर जिले के लूणियावास ग्राम पंचायत का भावगढ़ बंध्या 400 वर्षो से कौन से मेले के लिए विख्यात है -

 उत्तर.  गधों का मेला'

प्रश्न    बादशाह का प्रसिद्ध मेला राजस्थान के किस शहर में आयोजित होता है -

 उत्तर.  ब्यावर'

प्रश्न    कौन सा मेला वर्ष में दो बार आयोजित होता है -

 उत्तर.  करणी माता'

प्रश्न    सिता-बाड़ी का प्रसिद्ध मेला किस जिले में लगता है -

 उत्तर.  बारां'

प्रश्न    राजस्थान का प्रसिद्ध बेणेश्वर मेला किस माह में भरता है -

 उत्तर.  माघ'

प्रश्न    निम्न में से किस स्थान पर बोहरा समुदाय का प्रमुख उर्स लगता है -

 उत्तर.  गलियाकोट में बाबा फखरूद्दीन की दरगाह पर'


प्रश्न   जिला, जिसमें प्रसिद्ध भर्तृहरि मेला आयोजित होता है -

 उत्तर.  अलवर'

प्रश्न   तेजाजी का मेला आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  परबतसर'

प्रश्न  बाणगंगा का मेला कहाँ लगता है -

 उत्तर.  जयपुर जिला'

प्रश्न   किसकी स्मृति में तिलवाड़ा पशु मेला आयोजित होता है -

 उत्तर.  मल्लिनाथजी'

प्रश्न    सवाई भोज का मेला भिलवाड़ा(असींद) में प्रतिवर्ष किस समय लगता है-

 उत्तर.  भाद्रपद शुक्ल अष्टमी'

प्रश्न  रेवारी जाति का सबसे बड़ा मेला राजस्थान में किस स्थान पर भरता है -

 उत्तर.  सारणेश्वर मंदिर -सिरोही'

प्रश्न   प्रसिद्ध आदिवासी मेला बेणेश्वर किस जिले में भरता है -

 उत्तर.  डूंगरपुर'

प्रश्न  गौतमेश्वर धाम किस जिले में है -

 उत्तर.  प्रतापगढ़'

प्रश्न  घोटिया अम्बा का मेला किस जिले में आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  बांसवाड़ा'

प्रश्न   कपिल मुनि मेला लगता है -

 उत्तर.  कोलायत में'

प्रश्न   ‘फुलडोल- उत्सव’ मनाया जाता है -

 उत्तर.  रामस्नेही संप्रदाय द्वारा'

प्रश्न   निम्न में से गलत युग्म को पहचानिए-

 उत्तर.  मरू महोत्सव - बाड़मेर'

प्रश्न  कजली तीज मेला कहां आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  बूंदी'

प्रश्न   मरू मेला कहां आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  जैसलमेर'


प्रश्न   हाथी महोत्सव आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  जयपुर'

प्रश्न   गरूड़ मेला कहां आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  भरतपुर'

प्रश्न   चनणी चेरी मेला कहां पर आयोजीत किया जाता है -

 उत्तर.  बीकानेर'

प्रश्न    तीर्थराज मेला आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  धौलपुर, मचकुण्ड'

प्रश्न    निम्न में से कौनसा मेला लुनी नदी के किनारे भरता है -

 उत्तर.  मल्लीनाथ पशु मेला'

प्रश्न   प्रसिद्ध कैला देवी का मेला कहां आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  करौली'

प्रश्न   गौतमेश्वर का मेला कहां पर आयोजित किया जाता है -

 उत्तर.  'सिरोही'

प्रश्न   राजस्थान के रूणेचा के मेले की वह विशेषता जो सुखी समाज के लिए आवश्यक है -

 उत्तर.  'साम्प्रदायिक सद्भाव'


प्रश्न   राजस्थान में राज्य स्तरीय पशु मेले सबसे ज्यादा किस जिले में भरते हैं -

 उत्तर.  'नागौर'

प्रश्न   तेजाजी पशु मेला आयोजित होता है -

 उत्तर.  'परबतसर'

प्रश्न    प्रसिद्ध आदिवासी मेला वेणेश्वर किस जिले में आयोजित होता है -

 उत्तर.  'डूंगरपूर'

प्रश्न   गधों का मेला लगता है -

 उत्तर.  'जयपुर'

प्रश्न   राजस्थान के प्रसिद्ध पुष्कर मेले का आयोजन कब किया जाता है -

 उत्तर.  'कार्तिक में'

प्रश्न   भोजन थाली मेला राजस्थान के किस जिले में आयोजित होता है-

 उत्तर.  'भरतपुर'

प्रश्न   कुंभ मेले का लघु मरूस्थलीय रूप किस जिले में आयोजित होता है-

 उत्तर.  'बाड़मेर'

प्रश्न   बेणेश्वर का प्रसिद्ध मेला किस तिथी को आयोजित होता है-

 उत्तर.  'माद्य पूर्णिमा'

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